वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) पर निबंध
कर किसी भी अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी होती है। भारतीय अर्थव्यवस्था मे प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष कर प्रचलित है। अप्रत्यक्ष कर अत्यंत ज़टिल तथा सार्वभौमिक प्रकृति के होने के कारण निम्न वर्ग को प्रभावित करते है। अतः इनमे सुधार वांछनीय है।
भारत सरकार ने कर सुधार हेतु 122वें संविधान संशोधन विधेयक को मंजूरी दी है, जो 1 जुलाई 2017 से धरातलीय स्तर पर अमल होगा। एक देश, एक बाज़ार तथा एक कर पर आधारित इस कर व्यवस्था से वस्तुओं एवं सेवाओं की लागत मे स्थिरता आयेगी। जीएसटी लागू होने पर उत्पाद शुल्क, बिक्री कर, सेवा कर जीएसटी मे समाहित हो जाएंगे, जिससे घरेलू एवं दैनिक उपयोग की वस्तुओं के मूल्यों मे कमी आयेगी। इससे उपभोग मे वृद्धि होगी फलस्वरूप उत्पादन, विनिर्माण उद्योग एवं विदेशी निवेश मे वृद्धि होगी जिससे रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। यह त्रिस्तरीय- सीजीएसटी, एसजीएसटी एवं आईजीएसटी कर ढांचा है जो केंद्रीय, राज्य एवं अंतर्राज्यीय व्यापार कर होगा। इससे संघीय ढांचा सुदृढ़ीकृत होगा। कर निर्धारण हेतु जीएसटी परिषद का भी गठन किया गया है जिसके अध्यक्ष केंद्रीय वित्त मंत्री होंगे।
हालांकि इतने बड़े आर्थिक सुधार को अमल करने मे कुछ मुख्य चुनौतियाँ भी है जैसे - आरम्भिक वर्षो मे राज्यों के राजस्व कमी की क्षतिपूर्ति, विवाद निस्तारण, नई कर प्रणाली का कर्मचारियों को प्रशिक्षण, थ्रेसोल्ड लिमिट निर्धारण। जीएसटी लागू होने से कुछ सेवाओं के महंगे होने की संभावना है तथा अंतर्राज्यीय व्यापार शुल्क घटने से व्यवसायी तथा निवेशक क्षेत्रीय सुगमता को महत्व देंगे नाकि क्षेत्रीय विकास व स्थानीय रोजगार को।
किन्तु फिर भी सरकार द्वारा अच्छी रणनीति एवं न्यायिक व्यवस्था द्वारा इसे सुचारू रूप से व्यवहारिक बनाया जा सकता है।वैश्विक प्रतिस्पर्धा में भारतीय अर्थव्यवस्था की पहचान बनाने तथा व्यापारिक सुगमता हेतु ऐसे प्रभावकारी परिवर्तन अत्यावश्यक है।
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